Friday, January 6, 2017

नरेन्द्र मोदी फर्श से अर्श तक का सफ़र .....

नरेन्द्र मोदी जी के शुन्य से शिखर तक के सफ़र की पूरी कहानी जो आपको प्रेरणा देगी ध्यान से पढियेगा|


50 में वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्‍मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 65 बरस के हो गए. एक चाय बेचने वाले कभी देश का पीएम भी बनेगा ये किसी ने सोचा नहीं था. मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया. बचपन से ही उनका संघ की तरफ खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था. वे 1967 में 17 साल की उम्र में अहमदाबाद पहुंचे और उसी साल उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली. इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए| इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे|


1980 के दशक में जब मोदी गुजरात की भाजपा ईकाई में शामिल हुए तो माना गया कि पार्टी को संघ के प्रभाव का सीधा फायदा होगा. वे वर्ष 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए. नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की. इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए|


मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया. इसके बाद 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया. इस पद पर वो अक्‍टूबर 2001 तक रहे. लेकिन 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई. उस समय गुजरात में भूकंप आया था और भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे|


मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ जिसमें कई हिंदू कारसेवक मारे गए. इसके ठीक बाद फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ़ दंगे भड़क उठे. इन दंगों में सरकार के मुताबिक एक हजार से ज्यादा और ब्रिटिश उच्चायोग की एक स्वतंत्र समिति के अनुसार लगभग 2000 लोग मारे गए. इनमें ज्यादातर मुसलमान थे. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौर किया तो उन्होंनें उन्हें 'राजधर्म निभाने' की सलाह दी जिसे वाजपेयी की नाराजगी के संकेत के रूप में देखा गया|


मोदी पर आरोप लगे कि वे दंगों को रोक नहीं पाए और उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया. जब भारतीय जनता पार्टी में उन्हें पद से हटाने की बात उठी तो उन्हें तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे की ओर से समर्थन मिला और वे पद पर बने रहे. गुजरात में हुए दंगों की बात कई देशों में उठी और मोदी को अमरीका जाने का वीजा नहीं मिला. ब्रिटेन ने भी दस साल तक उनसे अपने रिश्ते तोड़े रखे|


मोदी पर आरोप लगते रहे लेकिन राज्य की राजनीति पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती गई. मोदी के खिलाफ दंगों से संबंधित कोई आरोप किसी कोर्ट में सिद्ध नहीं हुए हैं. हालांकि, खुद मोदी ने भी कभी दंगों को लेकर न तो कोई अफसोस जताया है और न ही किसी तरह की माफी मांगी है. महत्वपूर्ण है कि दंगों के चंद महीनों के बाद ही जब दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में मोदी ने जीत दर्ज की थी तो उन्हें सबसे ज्यादा फायदा उन इलाकों में हुआ जो दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित थे|


इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे. फिर 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रहे और अब केंद्र में अपने नेतृत्‍व में सरकार चला रहे हैं


क्या आप जानते हैं, गुजरात में अपना जादू बिखेरने वाले नरेंद्र मोदी कभी साधु बनना चाहते थे? इतना ही नहीं एक वक्त था जब उन्होंने चाय की दुकान भी लगाई. मोदी के जीवन में इसी तरह के कई उतार-चढ़ाव आए. तो जानिए उनके जीवन से जुड़े दिलचस्प प्रसंग...


नरेंद्र मोदी बचपन में आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे. काम भी अलग तरह का कर जाते थे. एक बार वो घर के पास के शर्मिष्ठा तालाब से एक घड़ियाल का बच्चा पकड़कर घर लेकर आ गए. उनकी मां ने कहा बेटा इसे वापस छोड़ आओ, नरेंद्र इस पर राजी नहीं हुए. फिर मां ने समझाया कि अगर कोई तुम्हें मुझसे चुरा ले तो तुम पर और मेरे पर क्या बीतेगी, जरा सोचो. बात नरेंद्र को समझ में आ गई और वो उस घड़ियाल के बच्चे को तालाब में छोड़ आए|


नरेंद्र मोदी को हम कई तरह के गेट अप में देखते हैं. दरअसल स्टाइल के मामले में मोदी बचपन से ही थोड़े अलग थे. कभी बाल बढ़ा लेते थे तो कभी सरदार के गेट अप में आ जाते थे. रंगमंच उन्हें खूब लुभाता था. नरेंद्र मोदी स्कूल के दिनों में नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अपने रोल पर काफी मेहनत भी करते थे|


नरेंद्र मोदी वड़नगर के भगवताचार्य नारायणाचार्य स्कूल में पढ़ते थे. पढ़ाई में नरेंद्र एक औसत छात्र थे, लेकिन पढ़ाई के अलावा बाकी गतिविधियों में वो बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे. एक तरफ जहां वो नाटकों में हिस्सा लेते थे, वहीं उन्होंने एनसीसी भी ज्वाइन किया था. बोलने की कला में तो उनका कोई जवाब नहीं था, हर वाद विवाद प्रतियोगिता में मोदी हमेशा अव्वल आते थे|


बचपन में नरेंद्र मोदी को साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता था. मोदी खुद संन्यासी बनना चाहते थे. संन्यासी बनने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे और इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे और आखिर में हिमालय पहुंच गए और कई महीनों तक साधुओं के साथ घूमते रहे|


नरेंद्र मोदी बहुत मेहनती कार्यकर्ता थे. आरएसएस के बड़े शिविरों के आयोजन में वो अपने मैनेजमेंट का कमाल भी दिखाते थे|


आरएसएस नेताओं का ट्रेन और बस में रिजर्वेशन का जिम्मा उन्हीं के पास होता था. इतना ही नहीं गुजरात के हेडगेवार भवन में आने वाली हर चिट्ठी को खोलने का काम भी नरेंद्र मोदी को ही करना होता था|


नरेंद्र मोदी का मैनेजमेंट और उनके काम करने के तरीके को देखने के बाद आरएसएस में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला लिया गया. इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय कार्यालय नागपुर में एक महीने के विशेष ट्रेनिंग कैंप में बुलाया गया|


90 के दशक में नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका निभाई थी


90 के दशक में नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्हें उस वक्त के बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा का संयोजक बनाया गया. ये यात्रा दक्षिण में तमिलनाडु से शुरू होकर श्रीनगर में तिरंगा लहराकर खत्म होनी थी|


2001 में जब गुजरात में भूकंप के आने से 20,000 लोग मारे गए तब राज्य में राजनीतिक सत्ता में भी बदलाव हुआ. दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा. पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई और इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा|


वर्ष 2002 में गुजरात ही नहीं पूरे देश के इतिहास में वो काला अध्याय जुड़ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था. गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओं के जलने के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका कलंक मोदी आज तक नहीं धो पाए हैं|


दंगों में धूमिल हुई छवि के बावजूद वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भी मोदी की जीत हुई|


गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओं के जलने के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका कलंक मोदी आज तक नहीं धो पाए हैं|


मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब 1000 से 2000 लोग मारे गए. मोदी पर इल्जाम लगा कि उन्होंने दंगों को भड़काने का काम किया|


नरेंद्र मोदी बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए थे. 1958 में दीपावली के दिन गुजरात आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार उर्फ वकील साहब ने नरेंद्र मोदी को बाल स्वयंसेवक की शपथ दिलवाई थी. मोदी आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे. लेकिन जब मोदी ने चाय की दुकान खोली तो शाखाओं में उनका आना जाना कम हो गया|


नरेंद्र मोदी काम करना जानते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि उस काम की पूरी कीमत वसूल करना भी उन्‍हें बखूबी आता है. गुजरातियों को उसकी अस्मिता से जोड़ने की बात हो या फिर विकास को महिमामंडित करने की बात, वह हर कला में माहिर हैं|

साभार आज तक न्यूज़ 

Wednesday, December 28, 2016

नोटबंदी के 13 बड़े फायदे को जानकर आपकी आँखे खुल जायेंगी!, जो मीडिया आप को कभी नहीं बतायेगी

नोटबंदी से देश के ज्यादातर लोगों को दिक्कतें हो रही हैं, लेकिन सभी लोग प्रधानमंत्री के इस फैसले के समर्थन में हैं। देश की जनता जानती है कि इस फैसले से देश का ही फायदा होने वाला है। हाँ ये अलग बात है कि कुछ फायदे लोगों को बाद में दिखाई देंगे। हालांकि देश के कुछ भ्रष्ट नेता और चैनल वाले इस फैसले पर आपत्ति जाता रहे हैं। उनका मानना है कि यह फैसला देशहित में नहीं है। अगर आपको भी ऐसा लगता है तो आप गलत हैं, क्योंकि आपसे सच्चाई छुपाई जा रही है। अगर आप भी पूरी सच्चाई जान लेंगे तो आपका यह भ्रम दूर हो जायेगा कि इस योजना से देश को नुकसान होने वाला है। यह सच्चाई आपको कोई मीडिया चैनल नहीं बताएगा। पहले ही कहा जा चुका है कि इस विमुद्रीकरण का फायदा आम जनता को अभी नहीं देखने को मिल रहा है। लेकिन यह देश के लम्बे समय के आर्थिक विकास के लिए बहुत ही अच्छा है। इससे आने वाले समय में देश में सुख और समृद्धि ही आएगी। आइये हम आपको 15 ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाते हैं जिसे जानने के बाद आप समझ जायेंगे कि इससे देश को फायदा हो रहा है।

  1. बैंक ने हॉस्पिटल्स के लिए मोबाइल एटीएम शुरू किये हैं, जिससे मरीजों को पैसा निकालने के लिए कहीं और ना जाना पड़े।
  2. जो पैसा नक्सालियों, आतंकियों और जिहादियों तक पहुँचता था, उसपर लगाम लग गयी है।
  3. जब से विमुद्रीकरण हुआ है, लोग अपने अकाउंट में पैसे जमा कर रहे हैं। लोग अब बैंक जाने लगे हैं। देश में तो कई ऐसे लोग भी हैं जो, इस योजना की वजह से पहली बार बैंक जा रहे हैं। इस योजना से कम से कम वो जागरूक तो हो गए हैं।
  4.  जाली नोटों का चलन, इस कदम से 100% ख़त्म हो जायेगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। इसका असर कुछ हद तक दिखना शुरू भी हो गया है, लेकिन मीडिया और भ्रष्ट नेता इस बात को नहीं समझ रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्हें किसी बाहरी ताकत ने घेर रखा है।
  5. पैसे की वजह से जो अशांति फैलती थी, वह रुक गयी है। इससे पहले कितनी आतंकी घटनाएँ सुनने को मिलती थी, अब सभी बंद हो गयी हैं। देश के आतंकी, नक्सली और जिहादी ठंढे पड़ चुके हैं।
  6. लोक अदालत में एक दिन में 55 लाख पैसे सम्बन्धी विवादों का निपटारा किया गया है, जो पिछले कई सालों से अटके पड़े हुए थे।
  7. सभी बड़े उद्योगपति अपने टैक्स जमा कर रहे हैं, जो पिछले कई सालों से झूठ बोलकर कम टैक्स देते थे। अब वे लोग भी पूरा टैक्स दे रहे हैं। इससे देश का विकास ही होने वाला है।
  8. सभी बड़े सुनार अब अपने द्वारा बेचे गए सोने के गहनों का रिकॉर्ड रख रहे हैं और उनकी एंट्री फॉर्म में कर रहे हैं।
  9. जिन लोगों ने अपना टैक्स, बिजली बिल, फ़ोन बिल कई सालों से नहीं भरा हुआ था, अब वो भी अपना बिल जमा कर रहे हैं।
  10. देश के सभी बिजनेसमैन अब अपने काले धन को उजागर कर रहे हैं, और टैक्स जमा कर रहे हैं। इतना ही नहीं वह पिछले टैक्स के साथ ही साथ आगे के टैक्स भी भर रहे हैं। पिछले दिनों ऐसी कई घटनाएं देखने को मिल रही हैं, जिसमे ऐसे लोग दौड़कर आ रहे हैं और अपनी संम्पति को घोषणा कर रहे हैं और अपना टैक्स भर रहे हैं।
  11. छोटे- छोटे दुकानदार भी अब डिजिटल तरीके से पैसे का लेन देन शुरू कर रहे हैं। जो लोग पहले केवल कैश लिया करते थे, अब वो भी पेटिएम और डिजिटल वैलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
  12. टेक्स चोरी पर लगाम लगी है और चोरी करने वालों के होश उड़ चुके हैं। डर की वजह से वे सभी अपने टैक्स जमा कर रहे हैं।
  13. भारत के राजकोषीय घाटे में भी कमी आयी है।



Tuesday, December 27, 2016

एक प्रशासक के रूप में नरेन्द्र मोदी

7 अक्टूबर 2001 को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। एक राजनीतिक कार्यकर्ता और आयोजक से उनके बहुत जल्द एक प्रशासक में बदलने और सरकार चलाने के अनुभव ने उन्हें पद के लिए प्रशिक्षित होने का समय दिया। श्री मोदी को प्रशासकीय मामलों का मार्गनिर्देशन करना पड़ा, बीजेपी के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना पड़ा और साथ ही पहले दिन से ही एक विरोधी राजनीतिक वातावरण का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि उनके पार्टी सहयोगियों ने भी उन्हें एक बाहरी व्यक्ति समझा जिसे प्रशासन का कोई ज्ञान नहीं है। लेकिन उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

पहले १०० दिन का शासन :

गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी के पहले सौ दिन दिखाते हैं कि कैसे अपनी जिम्मेदारियों से परिचित होते हुए श्री मोदी ने प्रशासन को सुधारने की एक अपरम्परागत प्रणाली की भी शुरुआत की और बीजेपी की यथास्थिति को बदलने के लिए ऐसे विचारों को प्रस्तुत किया जो ज़रा हट के हैं। इन्हीं सौ दिनों में हमने नरेन्द्र मोदी को गुजरात में प्रशासनिक लालफीताशाही में कटौती करने के लिए नौकरशाहों के साथ काम करते और कच्छ में आए विनाशकारी भूकंप के बाद पुनर्वास प्रयासों को तेज करने के लिए प्रक्रियाओं को सरल करते हुए देखा। पहले सौ दिनों ने नरेन्द्र मोदी के सिद्धांतों- फिजूलखर्ची ख़त्म करना, उदाहरण देकर नेतृत्व करना, एक अच्छा श्रोता और एक तेजी से सीखने वाला बनना, को समझने में भी मदद की। पहले सौ दिन समावेशी मूल्य प्रणाली में उनके विश्वास को भी प्रकट करते हैं, जो कि इस बात से ज़ाहिर है कि वे लड़कियों को शिक्षा देने और उन गाँवों को विकास के लिए धनराशि देकर प्रोत्साहित करने को प्राथमिकता देते हैं जो प्रतियोगिता के ऊपर आम सहमति को चुनते हैं। आखिर में, सत्ता में आये पहले तीन महीनों में, उन्होंने अपने राज्य में लोगों को सशक्त किया और उन्हें प्रशासन में साझेदार बनाया. उन्होंने भूकंप पीड़ितों के साथ कच्छ में दिवाली मनाई और पुनर्वास प्रयासों को मिशन मोड में आगे बढाया. श्री मोदी ने दिखाया कि कैसे गुजरात पूरी तरह से विकास और सुशासन की राजनीति पर ध्यान देकर एक संकट से जल्दी से संभल सकता है. विकास और प्रशासन का एक उदाहरण के तौर पर एक वाइब्रेंट गुजरात के निर्माण का रास्ता नरेन्द्र मोदी के लिए आसान नहीं था। ये रास्ता प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों मुश्किलों और चुनौतियों से भरा था, कुछ तो उनकी खुद की पार्टी के अन्दर से भी थीं। लेकिन उनके मजबूत नेतृत्व ने उन्हें मुश्किल हालातों में भी टिकाये रखा। इससे पहले कि नरेन्द्र मोदी बिजली सुधार के कार्य को शुरू करते 2002 की घटनाओं ने उनकी परीक्षा ले ली।
जिंदगियों के दुर्भाग्यपूर्ण नुक्सान और गुजरात की बहाली की क्षमता को लेकर विश्वास की कमी ने किसी कमज़ोर व्यक्ति को जिम्मेदारियों को छोड़ने और दफ्तर से इस्तीफ़ा देने को मजबूर कर दिया होता। हालाँकि नरेन्द्र मोदी एक अलग नैतिक तंतु से बने थे। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की तीव्र आलोचना का सामना किया और साथ ही सुशासन के अपने उद्देश्य को आगे बढाने के लिए राजनीतिक विरोधियों के भारी दबाव को भी सहा।

राजनीति नहीं सरकार बड़ी

नरेन्द्र मोदी ने हमेशा ही प्रशासन को राजनीति से ज़रूरी माना है। वे कभी भी राजनीतिक मतभेदों को विकास से जुडी चुनौतियों का समाधान ढूढने के रास्ते में नहीं आने देते हैं। सरदार सरोवर परियोजना का समापन और जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने ये सुनिश्चित किया कि नर्मदा का पानी गुजरात में बहे, ये दिखाता है कि सुशासन में आम सहमति और समझ का संतुलन चाहिए होता है। श्री मोदी ने योजना को तेजी से आगे बढाने के लिए चतुराई से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के पडोसी राज्यों के साथ समझौता किया और इस प्रक्रिया में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को अपनी पहल के समर्थन में शामिल किया, ऐसी हिस्सेदारी आज के राजनीतिक माहौल में मुश्किल से ही देखने को मिलती है। पीने के पानी और सिंचाई दोनों के लिए जल प्रबंधन का विकेंद्रीकरण करके श्री मोदी ने दिखा दिया कि सरकार का काम बड़ी-बड़ी परियोजनाएं बनाना ही नहीं है बल्कि सेवा पहुँचाने तक की ज़िम्मेदारी को पूरा करना भी है।

बस एक क्लिक दूर विकास 

नरेंद्र मोदी द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन पर फोकस और उसके विस्तार पर ध्यान देने से यह समझने में मदद मिलती है, कि क्यों पिछले दशक में उनके ज्यादातर प्रयास सही तरीके से सर्विस डिलीवरी के संबंध में थे। यह विविध क्षेत्रों जैसे ई-न्यायालयों में भू-स्थानिक मानचित्रण तथा ‘स्वागत’ जैसे उपक्रमों में प्रौद्योगिकी के अभिनव प्रयोग से साबित होता है। श्री मोदी अपने ATVT जैसे विकेंद्रीकरण के प्रयासों के लिए जाने जाते रहे हैं। नरेंद्र मोदी का यह दृढ़ विश्वास है कि ज्यादा कानून बनाने की बजाय कार्य किए जाएं। यह इससे भी परिलक्षित होता है कि कैसे सिंगल विंडो सिस्टम से इंडस्ट्री लाभान्वित हुई, जिसको पर्यावरण क्लीयरेंस जैसे मामलों में पारदर्शिता और कुशलता से मदद मिली।



नरेन्द्र मोदी : जीवन परिचय कब कहाँ कैसे ?

नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में १७ सितम्बर १९५० को हुआ था। वह पूर्णत: शाकाहारी हैं। भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की। युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए | उन्होंने साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया। किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगर में पूरी की। उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और एम॰एससी॰ की डिग्री प्राप्त की।अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र था, लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी। इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी। 13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ, वह मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये। परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी। जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है: "उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।" पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती। हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।

राजनीति की शुरुवात :

नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वाघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी। अप्रैल १९९० में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी, जब गुजरात में १९९५ के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इसके बाद शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुला कर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया। १९९५ में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। १९९८ में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वह अक्टूबर २००१ तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्टूबर २००१ में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी।

गुजरात के मुख्यमन्त्री:

2001 में के शुभाई पटेल की सेहत बिगड़ने लगी थी और भाजपा चुनाव में कई सीट हार रही थी। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को नए उम्मीदवार के रूप में रखते हैं। हालांकि भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मोदी के सरकार चलाने के अनुभव की कमी के कारण चिंतित थे। मोदी ने पटेल के उप मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी से बोले कि यदि गुजरात की जिम्मेदारी देनी है तो पूरी दें अन्यथा न दें। 3 अक्टूबर 2001 को यह केशुभाई पटेल के जगह गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही उन पर दिसम्बर 2002 में होने वाले चुनाव की पूरी जिम्मेदारी भी थी।


नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री का अपना पहला कार्यकाल 7 अक्टूबर 2001 से शुरू किया। इसके बाद मोदी ने राजकोट विधानसभा चुनाव लड़ा। जिसमें काँग्रेस पार्टी के आश्विन मेहता को 14,728 मतों से हरा दिया। नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं, कोई भारी-भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती। उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा, परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे। वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं, जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। कुर्ता-पायजामा व सदरी के अतिरिक्त वे कभी-कभार सूट भी पहन लेते हैं। अपनी मातृभाषा गुजराती के अतिरिक्त वह हिन्दी में ही बोलते हैं।मोदी के नेतृत्व में २०१२ में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। भाजपा को इस बार ११५ सीटें मिलीं।